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January 13, 2025, 3:07 am

कुंभ मेला-महत्व, परंपरा, और आयोजन चक्र
Indian Culture & Heritage


कुंभ क्या है? कुंभ मेला हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 वर्षों में चार प्रमुख स्थानों पर आयोजित होता है—हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), नासिक और उज्जैन। इसे दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है, जहां लाखों-करोड़ों श्रद्धालु पवित्र स्नान के लिए एकत्र होते है साल के अनुसार कुंभ का चक्र कुंभ मेला चार स्थानों पर निम्नलिखित चक्र के अनुसार आयोजित होता है। हर 12 साल में प्रत्येक स्थान पर पूर्ण कुंभ मेला होता है। जो कि हर 6 साल में अर्धकुंभ मेला प्रयागराज और हरिद्वार में होता है। हर 144 साल में महाकुंभ मेला केवल प्रयागराज में होता है। कुंभ का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व कुंभ मेले का महत्व समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच अमृत कुंभ (अमृत कलश) के लिए संघर्ष हुआ, और अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरीं हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन। यही कारण है कि इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
पूर्व काल से इसकी परंपराएँ और प्रथाएँ पवित्र स्नान (शाही स्नान) सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान, जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। अखाड़ों का प्रदर्शन नागा साधु, अवधूत और अन्य संन्यासी अपनी परंपराओं का प्रदर्शन करते हैं। धार्मिक प्रवचन और सत्संग-संत, महात्मा और विद्वान धर्म और जीवन पर प्रवचन देते हैं। ध्यान और योग मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए विभिन्न योग और ध्यान शिविर आयोजित किए जाते हैं।
कुंभ का "144 साल" का आंकड़ा प्रत्येक 144 वर्षों में एक बार महाकुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित होता है, जिसे सबसे पवित्र और दुर्लभ अवसर माना जाता है। इस आयोजन में करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत भाग लेते हैं। किन लोगों के आगमन से कुंभ पवित्र हो जाता है? कुंभ मेले में प्रमुख रूप से निम्नलिखित लोगों के आगमन से इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।अखाड़ों के संत और महात्मा (नागा साधु, दसनामी संन्यासी, वैष्णव संत आदि) चारों पीठों के शंकराचार्य महामंडलेश्वर और महामंडलाधीश
हिन्दू धर्मगुरु और भक्तगण विदेशी श्रद्धालु और आध्यात्मिक साधक कुंभ कब-कब होता है?
कुंभ मेले की तिथियां ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर निर्धारित की जाती हैं। प्रयागराज (इलाहाबाद)-मकर संक्रांति के समय गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर। हरिद्वार -जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होता है। नासिक-जब बृहस्पति सिंह राशि में होता है और सूर्य वृश्चिक राशि में होता है। उज्जैन -जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है। कुंभ मेला का आध्यात्मिक और सामाजिक प्रभाव कुंभ मेले में भाग लेने से व्यक्ति को आत्मशुद्धि, आध्यात्मिक उन्नति, और मोक्ष की प्राप्ति का अवसर मिलता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां विभिन्न समुदायों के लोग एक साथ मिलते हैं। कुंभ मेला हिंदू धर्म की सबसे बड़ी धार्मिक परंपराओं में से एक है। यह आध्यात्मिक उन्नति, ज्ञान, और मोक्ष प्राप्ति का पवित्र अवसर प्रदान करता है। चाहे वह हर 12 साल में होने वाला पूर्ण कुंभ हो, 6 साल में अर्धकुंभ, या 144 साल में महाकुंभ यह आयोजन हमेशा लाखों लोगों को आकर्षित करता है और भारतीय संस्कृति की समृद्धि को दर्शाता है। अभिप्राय मिडिया फाउंडेशन के चेयरमैन फाउंडर अभिज्ञान आशीष मिश्रा ने बताया प्रयागराज मे अदभुत आदुतिय महाकुम्भ का आयोजन शुरू हुआ महाकुम्भ मे आस्था का सैलाब उमड़ा लगभग 40 करोड़ लोगो का आने का अनुमान लगाया जा रहा है महाकुम्भ का शुभारम्भ बेहद ही सुन्दर था जहाँ साधू सन्यासी व नागा साधुओ के प्रवेश के साथ ही मघी पूर्णिमा स्नान से शुरू हुआ वहीं मकर संक्रांति होने से इस स्नान का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। वहीं पहुचे श्रद्धालूओ ने स्नान कर परम पुण्य सौभाग्य प्राप्त किया प्रयागराज मे शुरू हुये इस आयोजन के लिये देश वासियो कों बहुत बहुत बधाई हों वा डेढ़ महा चलने वाले इस आयोजन मे परमपिता परमेस्वर से प्रार्थना है कि वे जिस कामना के साथ वहाँ पहुचे उन सभी की मनोकामना पूर्ण हों वा सभी कों आशीर्वाद प्राप्त हों।

Abhigyan Ashish Mishra

Abhigyan Ashish Mishra

Founder & Chairman