गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादों पर किए गए अत्याचार को सिख इतिहास और भारतीय धर्म-संस्कृति में एक अत्यंत दर्दनाक घटना के रूप में याद किया जाता है। यह घटना न केवल सिख समुदाय, बल्कि पूरी मानवता के लिए साहस, बलिदान, और आस्था की सर्वोच्च मिसाल है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं। साहिबजादों पर अत्याचार के कारण मुगल साम्राज्य की नीतिया औरंगज़ेब का शासन धार्मिक असहिष्णुता और कट्टरता पर आधारित था। वह हिंदू, सिख और अन्य गैर-मुस्लिम धर्मों के अनुयायियों पर इस्लाम धर्म अपनाने के लिए दबाव डालता था। गुरु गोविंद सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियाँ गुरु गोविंद सिंह ने सिखों को एक सैन्य शक्ति के रूप में संगठित किया और मुगलों के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई। उनका खालसा पंथ, धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में, मुगलों के खिलाफ एक बड़ा खतरा बन गया। परिवार को तोड़ने का प्रयास साहिबजादों को गुरु गोविंद सिंह जी से अलग करने और उनकी आस्था को तोड़ने के उद्देश्य से, मुगलों ने बच्चों को क्रूर सजा दी। उन्होंने सोचा कि गुरु गोविंद सिंह अपने बच्चों को बचाने के लिए झुक जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गुरु गोविंद सिंह से इस घटना का संबंध आध्यात्मिक और नैतिक नेतृत्व गुरु गोविंद सिंह ने हमेशा अपने परिवार और अनुयायियों को धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी। साहिबजादों ने अपनी शहादत के माध्यम से उनके उपदेशों को साकार किया। बलिदान का प्रतीक गुरु गोविंद सिंह ने अपने चारों पुत्रों (दो बड़े साहिबजादे भी चामकौर की लड़ाई में शहीद हुए) और अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी को धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिया। साहिबजादों की शहादत इस त्याग का हिस्सा बनकर गुरु गोविंद सिंह की विरासत को और मजबूत करती है पारिवारिक बलिदान इस घटना ने दिखाया कि गुरु गोविंद सिंह और उनका परिवार केवल अपने व्यक्तिगत जीवन के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए जीता था। इस घटना से क्या-क्या आहत हुआ ? धार्मिक स्वतंत्रता साहिबजादों पर अत्याचार सिख धर्म और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला था। न्याय और मानवता बच्चों पर किए गए क्रूर अत्याचार ने मानवता और न्याय को गहरी चोट पहुंचाई। सामाजिक संतुलन यह घटना सिख समुदाय और समाज के लिए एक आघात थी, लेकिन इसने उनके संघर्ष को और मजबूत किया। इस घटना को किस रूप में याद किया जाता है ? वीरता और आस्था का प्रतीक साहिबजादों को उनकी निडरता, आस्था, और धर्म के प्रति निष्ठा के लिए याद किया जाता है। शहादत के प्रतीक यह घटना सिख धर्म में बलिदान और त्याग का सबसे बड़ा उदाहरण है। वीर बाल दिवस भारत सरकार ने 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस घोषित किया, ताकि उनकी शहादत और उनके बलिदान को सम्मानित किया जा सके। प्रेरणा का स्रोत उनकी शहादत बच्चों और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी, जो साहस, सत्य, और धर्म के लिए खड़े होने की शिक्षा देती है। संदेश और महत्व इस घटना का संदेश स्पष्ट है धार्मिक स्वतंत्रता और नैतिकता के लिए हर तरह के बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए। साहिबजादों की शहादत यह सिखाती है कि धर्म और सत्य की रक्षा के लिए उम्र और परिस्थितियां मायने नहीं रखतीं। यह घटना भारतीय इतिहास और सिख परंपरा में अमर है। अभिप्राय मिडिया फाउंडेशन के चेयरमैन फाउंडर अभिज्ञान आशीष मिश्रा ने वीर बाल दिवस पर कहा गुरू गोविन्द सिंह ने ना केवल देश के लिये बल्कि धर्म और संस्कृति के लिये भी अपने परिवार के प्राणो की आहुति दे दी इस लिये कहते हैँ इतिहास के पन्नों मे पूरे परिवार की गाथा अमर और अमिट हो गई।
Abhigyan Ashish Mishra
Founder & Chairman