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May 1, 2025, 3:14 pm

भगवान परशुराम जयंती 2025 - AMF
Indian Culture & Heritage

भगवान परशुराम हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। वे एक ब्राह्मण ऋषि जमदग्नि और क्षत्रिय राजकुमारी रेणुका के पुत्र थे। उन्हें एक महान योद्धा, शस्त्रों के ज्ञाता और न्याय के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) और द्वापर युग (महाभारत काल) के संधिकाल में उपस्थित थे। उनका मुख्य कार्य पृथ्वी को अत्याचारी और अधर्मी शासकों से मुक्त कराना था। उन्होंने कई बार दुष्ट क्षत्रिय राजाओं का संहार किया और धर्म की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महान योद्धाओं के गुरु भी थे और उन्होंने उन्हें शस्त्र विद्या प्रदान की। वर्तमान कलयुग में, उन्हें आठ चिरंजीवियों में से एक माना जाता है, जो आज भी पृथ्वी पर तपस्यारत हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, वे कलयुग के अंत में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार को भी शस्त्र विद्या सिखाएंगे। भगवान परशुराम भृगु ऋषि के वंशज थे, जो ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक थे। उनके पिता, महर्षि जमदग्नि, एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण ऋषि थे, जबकि उनकी माता, रेणुका, राजा गाधि की पुत्री थीं, जो क्षत्रिय कुल से थीं। इस प्रकार, परशुराम में ब्राह्मणों के तेज और क्षत्रियों के शौर्य का अद्भुत संगम था। उनके चार भाई थे - रुक्मवान, सुषेण, वसु और विश्वावसु। कहा जाता है कि भगवान परशुराम का जन्म पृथ्वी पर ऋषि-मुनियों और धर्म की रक्षा के लिए हुआ था। उन्हें भगवान शिव से विशेष वरदान और परशु (फरसा) नामक अस्त्र प्राप्त हुआ था, जिससे वे अद्वितीय योद्धा बने। एक अन्य कथा के अनुसार, अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी माता का वध करने के बाद, महर्षि जमदग्नि ने प्रसन्न होकर उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने, अपने भाइयों को ठीक करने और कभी पराजित न होने तथा दीर्घायु प्राप्त करने का वरदान मांगा। परशु (फरसा) कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें यह अजेय अस्त्र प्रदान किया, जिसके कारण उनका नाम परशुराम पड़ा। श्रेष्ठ योद्धा का वरदान भगवान शिव ने उन्हें युद्ध कला में अद्वितीय कौशल और श्रेष्ठ योद्धा होने का वरदान भी दिया था। चिरंजीवी होने का वरदान कुछ मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने उन्हें अमरता का वरदान भी दिया था, जिसके कारण वे आज भी जीवित माने जाते हैं। अपने पिता, महर्षि जमदग्नि से प्राप्त वरदान अपनी माता रेणुका का वध करने के बाद, महर्षि जमदग्नि परशुराम की आज्ञाकारिता से प्रसन्न हुए और उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा माता का पुनर्जीवन परशुराम ने अपनी माता रेणुका को फिर से जीवित करने का वरदान मांगा। भाइयों का सामान्य होना उन्होंने अपने भाइयों को उनकी पूर्व स्थिति में वापस लाने का वरदान मांगा, जिन्हें उनके पिता ने आज्ञा न मानने के कारण शाप दिया था। कभी पराजित न होना और दीर्घायु उन्होंने युद्ध में कभी पराजित न होने और लंबी आयु का वरदान भी प्राप्त किया। इन वरदानों के कारण ही भगवान परशुराम एक शक्तिशाली और चिरंजीवी व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। भगवान परशुराम का जन्म नाम राम था। लेकिन जब उन्होंने भगवान शिव से कठिन तपस्या करके परशु नामक अस्त्र प्राप्त किया, तो उनका नाम परशुराम पड़ गया। 'परशु' का अर्थ कुल्हाड़ी या फरसा होता है, और 'राम' उनके मूल नाम से लिया गया है। इस प्रकार, परशु धारण करने के कारण वे परशुराम कहलाए। अभिप्राय मिडिया फाउंडेशन के चेयरमैन फाउंडर अभिज्ञान आशीष मिश्रा ने अत्यधिक शक्तिशाली भगवान परशुराम जयंती के अवसर पर कहा चिरंजीवी का वरदान प्राप्त परशुराम सदा सभी के लिये जीवन रकक्षक के रूप मे वा उनका आशीर्वाद से मनुष्य रूपी प्राणियों का जीवन धन्य हों रहा है परशुराम जयंती पर सभी देश वासियों शुभकामनायें दी।

Abhigyan Ashish Mishra

Abhigyan Ashish Mishra

Founder & Chairman