रूपचतुर्दशी, जिसे नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली भी कहते हैं, दीपावली से एक दिन पहले कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन का महत्व विशेष रूप से हिन्दू धर्म में माना जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य शारीरिक और आत्मिक शुद्धि है। इसका धार्मिक महत्व है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध कर कई लोगों को नरक से मुक्ति दिलाई थी। इसलिए इसे नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने और शुद्धि के प्रतीक रूप में उबटन (तिल और चने का लेप) का प्रयोग करने का भी महत्व है। यह परंपरा बताती है कि रूप और स्वास्थ्य की देखभाल सिर्फ बाहरी सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के लिए भी जरूरी है। रूपचतुर्दशी का अर्थ है सुंदरता का दिन। धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से इस दिन को सौंदर्य, स्वच्छता और स्वास्थ्य का प्रतीक मानकर पूजा और स्नानादि करते हैं ताकि व्यक्ति के अंदर और बाहर दोनों रूपों की सुंदरता को प्राप्त किया जा सके। रूपचतुर्दशी का महत्व धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह त्योहार न केवल सौंदर्य और स्वास्थ्य से जुड़ा है, बल्कि जीवन में सकारात्मकता, ऊर्जा, और शुद्धि का प्रतीक भी है। इस दिन विशेष रूप से कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को महत्व दिया जाता है।
आत्मिक और शारीरिक शुद्धि, रूपचतुर्दशी पर सूर्योदय से पहले स्नान करके शरीर पर उबटन लगाने की परंपरा है। तिल, आटा, और अन्य जड़ी-बूटियों से बने उबटन का उपयोग करने से शरीर की सफाई होती है और यह शरीर को स्वस्थ रखने का प्रतीक है। इसे आत्मिक शुद्धि के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है ताकि व्यक्ति के मन और आत्मा को सकारात्मक ऊर्जा मिल सके।
स्वास्थ्य और सौंदर्य,इस दिन सुंदरता और स्वास्थ्य की देखभाल करने का विशेष महत्व है। इसे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और ऊर्जावान रहने का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि जो लोग इस दिन अपने रूप, सौंदर्य, और स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं, वे पूरे वर्ष स्वस्थ और आकर्षक रहते हैं।
नरक से मुक्ति का प्रतीक,इस दिन को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं क्योंकि इसी दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध करके 16,000 कन्याओं को नरकासुर के अत्याचार से मुक्त किया था। इस दिन को बुराइयों से छुटकारा पाने, आंतरिक शुद्धता प्राप्त करने, और जीवन में नकारात्मकता को खत्म करने का प्रतीक भी माना जाता है। सकारात्मक ऊर्जा,इस दिन दीप जलाने की भी परंपरा है ताकि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आए और नकारात्मकता दूर हो। घर में रोशनी करने से सकारात्मकता और शांति का वातावरण बनता है। दीपावली की तैयारी, रूपचतुर्दशी दीपावली से ठीक एक दिन पहले आती है, इसलिए इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन घर की साफ-सफाई करके, सजावट और खुद को संवार कर लोग दीपावली की तैयारी करते हैं।
इस तरह, रूपचतुर्दशी का महत्व न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी जुड़ा हुआ है। यह त्योहार जीवन में सौंदर्य, स्वास्थ्य, और सकारात्मकता को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। अभिप्राय मिडिया फाउंडेशन दीपावली के अवसर पर इन सभी विषयो पर ध्यान देने की अवश्यक्त है सबसे पहले घर की स्वच्छता तो अवश्यक है ही इसके साथ साथ तन की भी स्वच्छता बहुत जरुरी है दीपावली त्योहार की श्रृंखला मे धनतेरस के दूसरे दिन रूपचतुर्दशी कहलाता आत्मिक शारीरिक शुद्धि व भगवान श्री कृष्णा ने राक्षस नरकसुर का बध कर बुराई और अत्याचार का अन्त कर शांति स्थपित की थी इसलिये शरीरक सुंदरता और स्वास्थ्य मन कों ही रूपचतुर्दशी कहा जाता है
Abhigyan Ashish Mishra
Founder & Chairman